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स॒त्रा यदीं॑ भार्व॒रस्य॒ वृष्णः॒ सिष॑क्ति॒ शुष्मः॑ स्तुव॒ते भरा॑य। गुहा॒ यदी॑मौशि॒जस्य॒ गोहे॒ प्र यद्धि॒ये प्राय॑से॒ मदा॑य ॥७॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

satrā yad īm bhārvarasya vṛṣṇaḥ siṣakti śuṣmaḥ stuvate bharāya | guhā yad īm auśijasya gohe pra yad dhiye prāyase madāya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒त्रा। यत्। ई॒म्। भा॒र्व॒रस्य॑। वृष्णः॑। सिस॑क्ति। शुष्मः॑। स्तु॒व॒ते। भराय॑। गुहा॑। यत्। ई॒म्। औ॒शि॒जस्य॑। गोहे॑। प्र। यत्। धि॒ये। प्र। अय॑से। मदा॑य ॥७॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:21» मन्त्र:7 | अष्टक:3» अध्याय:6» वर्ग:6» मन्त्र:2 | मण्डल:4» अनुवाक:2» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब राजविषयान्तर्गत राजभृत्यों के कर्म को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (यत्) जो (शुष्मः) बलवान् (सत्रा) सत्य से (ईम्) सब प्रकार (भार्वरस्य) प्रजा के पालन करनेवाले राजा के (वृष्णः) बलिष्ठ की (स्तुवते) प्रशंसा करते हुए (भराय) धारण करनेवाले के लिए (सिषक्ति) सींचता है और (यत्) जो (गुहा) बुद्धि में (औशिजस्य) कामना करनेवालों में चतुर के (गोहे) स्वीकार करने योग्य घर में सत्य का (प्र) सिञ्चन करता है (यत्) जो (अयसे) गमन (मदाय) आनन्द और (धिये) बुद्धि के लिये बुद्धि में प्रज्ञान को (ईम्) सब प्रकार से (प्र) अत्यन्त सींचता है, वही सम्पूर्ण लाभ को प्राप्त होता है ॥७॥
भावार्थभाषाः - जो कर्मचारी लोग धर्म से राज्य का शासन करते हुए राजा के राज्य में सत्य-न्याय से प्रजाओं का पालन करते हैं, वे अतुल आनन्द को प्राप्त होते हैं ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ राजविषयान्तर्गतराजभृत्यकर्माह ॥

अन्वय:

यद्यः शुष्मः सत्रेम् भार्वरस्य वृष्णः स्तुवते भराय सिषक्ति यद्यो गुहौशिजस्य गोहे सत्यं प्र सिषक्ति यद्योऽयसे मदाय धिये गुहा प्रज्ञानमीं प्र सिषक्ति स एव सर्वं लभते ॥७॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सत्रा) सत्येन (यत्) यः (ईम्) सर्वतः (भार्वरस्य) प्रजाः भर्तू राज्ञः (वृष्णः) बलिष्ठस्य (सिषक्ति) सिञ्चति (शुष्मः) बलवान् (स्तुवते) प्रशंसां कुर्वते (भराय) धारकाय (गुहा) बुद्धौ (यत्) यः (ईम्) (औशिजस्य) कामयमानेषु कुशलस्य (गोहे) संवरणीये गृहे (प्र) (यत्) यः (धिये) प्रज्ञायै (प्र) (अयसे) गमनाय (मदाय) आनन्दाय ॥७॥
भावार्थभाषाः - ये भृत्या धर्म्येण राज्यं शासतो राज्ञो राष्ट्रे सत्येन न्यायेन प्रजाः पालयन्ति तेऽतुलमानन्दं लभन्ते ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे कर्मचारी धर्माने राज्याचे शासन करतात, राजाच्या राज्यामध्ये सत्य, न्यायाने प्रजेचे पालन करतात ते अत्यंत आनंद प्राप्त करतात. ॥ ७ ॥